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Monday, May 27, 2019

बिग ब्रदर्स की भूमिका में KCR ,बड़ा सवाल क्या जगन रेड्डी के साथ दोनों राज्यों के विकास का जिम्मा लेंगे!

बिग ब्रदर्स की भूमिका में KCR ,जगन रेड्डी के साथ दोनों राज्यों के विकास का जिम्मा लेंगे! संयुक्त आंध्र प्रदेश के बटवारे के करीब 5 साल बाद अब आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के बीच चल रहा मनमुटाव ख़त्म होने के आसार बन रहे हैं. इसका बड़ा कारन है आंध्र प्रदेश के होने वाले मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी और तेलंगाना के मुख्यमंत्री चन्द्रशेखर राव के बीच हुवी मुलाकात . जब से आंध्र प्रदेश का विभाजन हुवा है ,इन दोनों राज्यों के नेताओं का मिलना और बातचीत करना तो दूर, उलटा एक दुसरे का मुंह तक देखना पसंद नहीं करते थे, ऐसे में जगन रेड्डी का शपथ ग्रहण से पहले ही तेलंगाना के मुख्यमंत्री KCR से उनके घर पर जाकर मुलाकात करने को दक्षिण के इन दोनों राज्य की राजनीती में एक बड़ा और सकारात्मक कदम के रूप में देखा जा रहा है. इस दौरान जहाँ आंध्र प्रदेश के विकास के लिए जगन रेड्डी ने KCR से उनके सहयोग की मांग कर एक ऐसी राजनितिक परम्परा की शुरुवात कर दी, जिसकी दरकार दोनों ही राज्यों को विकास के नजरिये से सबसे जरुरी है. हालाँकि यह बात अलग है की अलग तेलंगाना राज्य को बनाने को लेकर जगन रेड्डी के पिता स्व. राजशेखर रेड्डी और TRS नेताओ के बीच हमेशा छत्तीस का आंकड़ा रहा है लेकिन पुरानी बातों को भूल कर जगन का KCR से मिलना और अपनी सरकार के लिए सहयोग मांगना इन दोनों ही राज्यों की जनता के बीच खासा सुर्खियाँ बटौरे हुवे हैं. वह भी उस समय जब तेलंगाना भयंकर सूखे की चपेट हैं, और आंध्र प्रदेश से उसे पानी की दरकार है, और आंध्र प्रदेश को केंद्र से वादे के अनुसार अपना बकाया "स्पेशल स्टेटस" लेने के लिए किसी सहयोगी दल के समर्थन की. दरअसल 2 जून 2014 को तेलंगाना को आंध्र प्रदेश से अलग करके 29 वां राज्य बनाया गया था. तेलगाना में चंद्रशेखर राव की सरकार बनी तो आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू की,.. दोनों ने ही अपने- अपने राज्य को देश का सर्वश्रेष्ठ राज्य बनाने का जोर शोर से दावा किया, लेकिन दोनों के बीच मनमुटाव एसा की हर दुसरे दिन किसी ना किसी मुद्दे को लेकर ये आपस में ही इस कदर उलझते नज़र आये की विकास की दौड़ में पिछड़ गए. इन दोनों सरकार के बीच का तनाव ना केवल इन दोनों राज्य की सीमा के भीतर बल्कि संसद की कारवाही के दौरान भी देखने को मिला. नतीजा संयुक्त आंध्र प्रदेश के बटवारे के बाद भी दोनों ही राज्य की जनता को उम्मीदों के अनुसार होने वाला विकास नसीब नहीं हो सका. पिछड़ने का यह कारन भी सबके सामने था, लेकिन चंद्रबाबू नायडू और चंद्रशेखर राव के बीच एक दुसरे को नीचा दिखाने की एसी अघोषित होड़ मची थी की ब्युक्रेट्स और जनता के अपनी- अपनी सरकारों को पूरा सहयोग देने के बाद भी इनके बीच का मनमुटाव कम नहीं हुवा, दोनों ही राज्यों को स्पेशल स्टेटस मिलने में ये दोनों नेता ही रोड़ा बनकर एक दुसरे के सामने खड़े नज़र आये. केंद्र की मजबूरी एसी की दोनों में से किसी एक को थोडी अधिक वित्तीय सहयोग मिलता, तो दूसरा उसके खिलाफ बगावत का मोर्चा खोलकर खडा हो जाता. जबकि वहीँ जगन मोहन रेड्डी और उनकी पार्टी के जन प्रतिनिधि इन सब बातों से दूर आंध्र को "स्पेशल स्टेटस" दिलाने के एकमात्र एजेंडे के साथ अपना पद छोड़ने को भी तैयार रहते. ठीक उसी तरह जैसा की कभी चंद्रशेखर राव अलग तेलंगाना राज्य बनाने के लिए दबाव के तहत बार- बार इस्तीफा देने से भी नहीं पीछे हटे. मैं जगन रेड्डी और चंद्रशेखर राव की मुलाकात को इसलिए भी आने वाले दिनों के लिए सकारात्मक कदम के रूप में देख रहा हूँ ,क्यों की YSR कांग्रेस के लोकसभा में आंध्र को स्पेशल स्टेटस देने की जब मांग उठाई थी तब TRS ने उसका समर्थन भी किया था, चंद्रबाबू नायडू के साथ भी यह हो सकता था लेकिन नायडू को तो मानों KCR के नाम की तरह उसका सहयोग भी मंजूर नहीं था. शायद यही कारन था की चंद्रबाबू नायडू और KCR दोनों ने ही बड़ी ही उम्मीदों के साथ लोकसभा चुनावों से पहले वैकल्पिक मोर्चा बनाने की कोशिश की, लेकिन इससे एक दुसरे को दूर ही रखा. और अब पीएम मोदी के बहुमत के साथ जितने पर दोनों की ही उम्मीदों और कोशिशों पर मानों पानी ही फिर गया. यह भी सच है की भले ही अब तक चंद्रबाबू नायडू आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं, लेकिन हैदराबाद और तेलंगाना में फिर से राजनितिक जमीन तलाशने को लेकर उनका मोह ख़त्म नहीं हुवा है, ऊपर से राजनितिक अनुभव का ऐसा घमंड की किसी को अपने आगे कुछ समझना ही छोड़ दिया, शायद इसी वजह से TRS से उनकी कभी नहीं बनी. जबकि इसके उलट आंध्र प्रदेश में TRS का नाम लेवा नहीं है, और जगन रेड्डी तेलंगाना में पार्टी के विस्तार की बजाय आंध्र प्रदेश तक ही अपनी राजनीती सीमित रखना चाहते हैं, ऐसे में KCR को भी लगने लगा है की दो अलग- अलग राज्यों के प्रभुत्व रखने वाली पार्टियों के एक साथ मजबूत साथी के रूप में साथ आना दोनों ही राज्यों के तेजी से विकास के मददगार कदम साबित होगा. . वैसे कहा जा रहा है की जगन मोहन रेड्डी से मुलाकात के बाद कभी आंध्र प्रदेश के लोगों को गालियाँ देते नहीं थकने वाले तेलंगाना के मुख्यमंत्री KCR ने भी दोनों राज्यों के बीच "बिग ब्रदर्स" की भूमिका निभाने का मन बनाते हुवे आगे बढ़ने का फैसला किया है. ऐसे में आश्चर्य नहीं होगा अकी अपने तेलागना राज्य के साथ यदि वे अपने पडौसी राज्य आंध्र प्रदेश के लिए भी वे केंद्र सरकार से जोरदार वकालात करते नज़र आये. यदि एसा होता है तो इसमें कोई शक नहीं की दोनों ही राज्य विकास के नए आयामों को छू पायेंगे . जो की इन दोनों ही राज्यों की जनता के लिहाज़ से वक़्त की सबसे बड़ी जरुरत भी है.

Saturday, May 25, 2019

माँ के अपमान में बदले से लेकर लगातार संघर्ष की दास्ताँ हैं जगन मोहन रेड्डी की ताजपोशी

समूचे देशवासियों की तरह मैं भी नरेंद्र मोदीजी की जीत को एतिहासिक मानता हूँ लेकिन एसा ही कुछ इतिहास दक्षिण भारत में भी रचा गया, जिसे कोई भी नज़रन्दाज़ नहीं कर सकता. मैं बात कर रहा हूँ आंध्र प्रदेश के लोकसभा और विधानसभा चुनाव परिणाम की, जहाँ से जगन मोहन रेड्डी ने वह करिश्मा कर दिखाया जो की सबको हैरान कर देने वाला था. उनकी पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव कुल 25 सीटों में से 22 सीटों पर धमाकेदार जीत दर्ज की, वहीँ विधानसभा की भी 175 सीटों में से 151 पर विजय हांसिल करके अब आंध्र प्रदेश में अपना मुख्यमंत्री बनाने जा रही है और यह सीएम और कोई नहीं खुद जगन मोहन रेड्डी ही है, जबकि पहले दिन से ही उन्हें नज़रन्दाज़ करने वाली कांग्रेस पुरे देश की तरह आंध्र प्रदेश के लोकसभा और विधानसभा चुनाव, दोनों में ही ‘शून्य’ पर चली गई.... जगन रेड्डी के इस करिश्में को कम से कम मैं तो उनकी माँ विजयाम्मा के सोनिया गाँधी द्वारा किये गए अपमान और उसके बाद कांग्रेस को अपनी ताकत बढाने के लिए लगातार किये गए कोशिशों का नतीजा ही मानूंगा. क्यों की आंध्र प्रदेश में लम्बे समय तक पत्रकारिता करने के दौरान जगन रेड्डी के संघर्ष और कोशिशों को मैंने शुरू से ही देखा और कवर किया है. उनके संघर्ष से सत्ता तक पहुँचने की कहानी भी बिलकुल दक्षिण भारत के फ़िल्मी कहानी की तरह ही है . एक शक्श दक्षिण में कांग्रेस को बड़ी ताकत बनाने वाले अपने पिता के निधन के बाद पार्टी में रहकर ही कुछ करना चाहता था,लेकिन 10 जनपथ से जुड़े लोगों ने उसे हर तरह से अलग-थलग करने की पूरी कोशिश की. यहाँ तक की जब वह अपने पिटा के निधन के बाद सदमे में जान देने वाले लोगों को सांत्वना देने के लिए ओदारप्पू (सांत्वना) यात्रा निकाल रहा था तो उसे कांग्रेस के लिए चुनोती देने वाला बताकर 10 जनपथ के कान भरे गए. नतीजा कांग्रेस हाईकमान ने कठोर फैसला लेना शुरू किया, संयुक्त आंध्र प्रदेश और केंद्र में जब पिता की पार्टी के नेताओ के बदले तेवरों की जगन ने परवाह नहीं की, तो उन्हें "साईड लाईन" करते हुवे उसके खिलाफ मुकदमे दायर कर कमजोर करने की कोशिश की गयी. हौंसला तोड़ने के लिए जेल भी भेजा गया, बावजूद इसके जनता से जुड़ने की जगन रेड्डी की ललक कम नहीं हुवी. हजारों किलोमीटर की सूबे की यात्रा पैदल ही नाप कर लोगों के बीच गए,अपनी बात रखी. नतीजा आज ना केवल लोकसभा के आंध्र प्रदेश से सबसे ज्यादा सीटें उनके खाते में हैं, बल्कि चंद्रबाबू नायडू सरीके मंझे हुवे नेता को भी इतनी बुरी तरह से पटखनी दी की शायद इसकी कसक ताउम्र उन्हें सताएगी. यही हैं वो जगन मोहन रेड्डी … जिनकी माँ ,बहन और उन्हें 10 जनपथ बुलाया गया और सोनिया गाँधी ने उनकी ‘ओदारपू’ यात्रा को चुनोती यात्रा बताते हुवे उसे स्थगित करने का फरमान जारी कर दिया। भला अपने पिता और संयुक्त आंध्र प्रदेश के सबसे दमदार मुख्यमंत्री राजशेखर रेड्डी के निधन के बाद उनके दुःख में सदमे से मरने और आत्महत्याएं करने वालों के घर जगन जाना कैसे रोक देते। यहाँ तक की 10 जनपथ ने अपने ख़ास सलाहकारों की बात मानते हुए जगन के प्रभाव को नज़रन्दाज़ करते हुवे बिना जनाधार वाले के.रोशेय्या को राजशेखर रेड्डी के बाद आंध्र प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया यह जनाते हुवे भी की पूरी कांग्रेस पार्टी और वहाँ के 117 विधायक वाईएसआर परिवार के साथ खड़े थे, और जगन रेड्डी से ज्यादा कांग्रेस के इस गढ़ को और कोई भी सुरक्षित नहीं रख सकता। रोशेया खुद तो कांग्रेस को संभाल नहीं पाए उलटा दक्षिण के इस गढ़ में कांग्रेस का अस्तित्व ही संकट में आ गया. इसके बाद भी कांग्रेस नहीं चेती और किरण कुमार रेड्डी फिर से बगावती सुर ख़त्म करने के लिए आंध्र का सीएम बना दिया। नतीजा कमजोर सीएम के चलते राज्य के विभाजन की मांग ने जोर पकड़ना शुरू किया और तेलंगाना को देश का 29 वां राज्य बनाने के लिए UPA-2 को मजबूर होना पड़ा. जिसका फायदा कांग्रेस की बजाय चंद्रशेखर राव की TRS के खाते में ही गया. और कांग्रेस अब तक भी यहाँ संभल नहीं पायी है. इस बीच जगन मोहन ने कडप्पा के सांसद पद से अपना इस्तीफा देते हुवे YSR कांग्रेस के नाम से नयी राजनितिक पार्टी बना ली और 3600 किलोमीटर की पैदल यात्रा करके जनता से लगातार जुड़े रहने का सिलसिला जारी रखा. उपचुनाव हुवे तो भारी वोटों से वे फिर सांसद बने, लेकिन अब भी कांग्रेस के नेताओं को उनकी असली ताकत का एःसास नहीं हुवा. उलटा उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के मामले दर्ज कर उन्हें पहले 18 महीने तक जेल भेज दिया गया, विपक्ष में रहने के दौरान चंद्रबाबू नायडू ने भी उनके सामने कम परेशानियां नहीं खड़ी की... लेकिन इसने जगन को तोड़ने की बजाय उन्हें और भी मजबूत करने का काम किया, नतीजा आज जगन रेड्डी की आंध्र प्रदेश में पूर्व बहुमत की सरकार बनने जा रही है. इस दौरान उन्होंने चंद्रबाबू नायडू जैसे मंझे हुवे नेता को जबरदस्त पटखनी तो दी ,साथ ही साबित कर दिया की यदि मुश्किल वक़्त में हिम्मत नहीं हारे तो कामयाबी का स्वाद कुछ इसी तरह से मिलता है. बहरहाल अब यह देखना होगा की जगन रेड्डी जनता की आशाओं और अपेक्षाओं पर कितना खरा उतरते हैं.

Monday, September 10, 2012

बेबस पिता या बेबस बेटा

बेबस पिता या बेबस बेटा आज मेरे हैदराबाद के मकान मालिक अचानक मेरे घर आये और उन्होने मुझसे मेरा कंप्यूटर युस करने की अनुमति मांगी..मेने भी दी.. उस वक़्त वे बड़े खुश नज़र आ रहे थे उन्होंने कहा की आज उन्हें बड़े बेटे का जनम दिन है और वे उसे बधाई सन्देश देना चाहते हैं... मैंने उन्हें कंप्यूटर ऑन करने दिया.. और वहां से यह सोचकर चला गया की कुछ देर मेल करेंगे और चले जायेंगे.. लेकिन करीब 1 घंटे बाद भी वे कंप्यूटर के सामने ही बेठे रहे और कुछ कर रहे थे तो सोचा शायद उन्हें कुछ परेशानी आ रही होगी और पता नहीं क्या सुझा उनके पास चला गया और पुचा अंकल क्या कंप्यूटर ठीक काम नहीं कर रहा था तो देखकर मुझे झटका लगा क्यों की उस 60 साल के शख्स की आँखों से आसू आ रहे थे और कंप्यूटर मैं अच्छी खासी स्पीड होने के बाद भी वे बमुश्किल 10 -12 लाईने ही अपने बेटे के नाम पर टाईप कर पाए थे और उसे मेरे ही सामने मेल कर दिया,,.. लेकिन हमेशा हसमुख रहने वाले उस शख्स की आँखों मैं आंसू .. बात मेरी कुछ समझ नहीं आ रही थी वह भी उस दिन जिस दिन उनके बड़े बेटे का जन्म दिन था और वह विदेश में कुछ दिनों की ट्रेंनिंग के लिए गया था.. अचानक उन्हें भी न जाने क्या सुझा और कहा की : श्रीवत्स क्या तुम वह मेल पढना चाहोगे जो मैंने मेरे बेटे को लिखा है... मैंने भी हां भर दिया .. और मेल पड़ा ओ उसमे लिखी वह 10 -12 मेरी समझ से कुछ बहार वाली थी क्यों की उन्होंने अपने बेटे के लम्बे जीवन की तो कमाना की ही साथ ही उसे सब कुछ सहने की ताकत देने की भी इस्वर से प्राथन कर कुछ ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जो की आम टूर पर केवल अध्यात्मिक गुर ही किसी प्रवचन के दौरान किया करते हैं.. जब मैंने इसका कारन उनसे पूछ तो उनके दिल का दर्द सामने आ ही गया.. उन्होंने बताया की उन्होंने अपने बेटे की बड़े ही अरमानो और धूमधाम से शादी करीब 5 साल पहले की थी लेकिन शादी के चंद ही महीनो बाद उसकी पढ़ी लिखी और अचानक लखपति ( पारंपरिक नहीं) बनाने वाले परिवार से आई बीवी ने अलग रहने का इरादा अपने पति को बता दिया और इन दोनों की ख़ुशी के खातिर किस तरह उन्होंने दिल पर पत्थर रखकर उन्होंने इसकी इजाजत दी..अलग रहने के बाद हफ्ते दस दिन में वे लोग आते लेकिन जल्द ही पहले महीने और फिर कई कई महीने तमीं एक बार वे उनसे मिलने को आने लाहे.. बेटा जब अकेले अपने माँ बाप से मिलने आता तो उसने घर पर मानो महाभारत ही मच जाता.. यहाँ तक की बहु से एक दिन साफ़ कह दिया की उसे सास ससुर का उसके घर आये दिन आकार मिलना अच्छा नहीं लगता.. यही नहीं घर में जब पौते का जन्म हुवा तो दादा दादी होने के नाते उन्हें करीब 10 दिन बाद इसकी सूचना दी गयी.. जिसकी मजबूरी भी बेटे के उन्हें अपने पत्नी के बयान( निर्देश) को बताकर उन्हें बता दी.. अन वे महीनो महीनो तरस जाते हैं अपने बेटे पौते को देखने .. पौता करीब १ साल का हो चूका है लेकिन बमुश्किल उन्होंने अपने घर के चिराग को आज तक उन्हें 5 -6 बार ही देखने का नसीब हुवा है.. छोटे बेटे की शादी में बहु भी आई लेकिन महज मेहमान बनकर महज 1 -2 घंटे में ही वह अपने पति को लेकर जबरदस्ती ऐसे चली गयी मानो उसका इस शादी से कोई सरोकार ही नहीं हो.. . लेकिन अपने बेटे के घर की शान्ति को बरक़रार रखने के लिए के लिए उन्होंने इन हालातो से भी समझोता कर लिया..साथ ही उन्होंने(सिद्दया जी ) ने साफ़ कर दिया की बहु की मर्जी के खिलाफ उनका बेटा भी उके पास नहीं आये क्यों की वे नहीं चाहते की उनके कारन उनके जवान बेटे के घर की शान्ति भंग हो... इस वृद्द शख्स ने बताया की उनका बेटा आज भी उनसे मिलने आना चाहता है लेकिन बहु एसा नहीं चाहती और बेटे के पिता से मिलने पर मरने मरने की धमकी तक दे देती है.. उनकी इस दुःख भरी दस्ता को सुनाने के बाद हालाँकि में यह तो नहीं समझ सका की आखिर बहु को अपने ससुराल वालो से क्या दुश्मनी है लेकिन इतना जरुर समझ में आ गया की बुढापे में एक बाप भले ही कितना ही बेबस, मजबूर और लाचार क्यों न हो जाए लेकिन हर हालत में वह यही चाहता है की उसके बेटा का परिवार सुखी रहे.. लेकिन यहाँ यह भी समझ में नहीं आ रहा है की यहाँ वह बेटा भी क्या करें. उस बेटे को क्या कहा जाए जिसे पालने पोषने और जिंदगी में कुछ बनाने के लिए जिस माँ बाप ने अपनी तमाम जिंदगी के सुख कुर्बान कर दी वही बेटा अब अपने माँ बाप की सेवा करने की बजाय उन्ही को ठेस नहीं पहुंचाने के लिए उन्ही के सख्त निर्देश का पालन करते हुवे अपनी उस बीवी के साथ रहने को मजबूर हो रहा है जो की उन्हें उसी के माँ बाप से अलग थलग कर रही है..

Monday, December 19, 2011

जयललिता-शशिकला नटराजन// Ajab Prem ki gajab kahani


तमिलनाडु की राजनीती में "पुराची तलेवी" यानी क्रांतिकारी नेता कही जाने वाली जयललिता को अपने "तख्ता पटल" का खतरा नज़र आ रहा था , क्या जयललिता को अपने ही किसी "ख़ास" से उनके खिलाफ बगावत की "बू" आ रही थी और क्या उनके ही पोएस गार्डन वाले घर में रहकर कोई उनके ही खिलाफ राजनितिक षड्यंत्र रच रहा था...तमिलनाडु की राजनीती पर पैनी निगाह रखने वालो की माने तो अपनी ख़ास दोस्त शशिकला नटराजन को पार्टी से निकले जाने के फेसले के पीछे जयललिता के दिलो दिमाग में कुछ एसा ही चल रहा था..
सोमवार(19 Dec 2011) को तमिलनाडु की जनता ने जब ऐ आई डी एम् के पार्टी की महासचिव और तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने अपनी सबसे पुरानी सहेली शशिकला नटराजन को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से बाहर का रास्ता दिखाने एलान किया तब किसी को भी इस खबर पर हेरानी नहीं हुवी क्यों की साल 1996 में चुनावो से ठीक पहले भी वह एसा ही कर चुकी थी लेकिन इस खबर के सामने आने के ठीक एक घंटे बाद खुद जयललिता द्वारा जारी किये गए एक बयान ने सबको जरुर चौंका दिया.. इस बयान में न केवल उन्होंने इस खबर की पुष्ठी की थी बल्कि अपनी पार्टी के क्रयाक्रताओ से शशिकला या उनके साथ निष्कासित किये गए शशिकला नटराजन के परिवार के 11 सदस्यों के साथ किसी तरह का संपर्क नहीं रखने का भी फरमान जारी कर दिया था.. साफ़ था की मामला काफी गंभीर था लेकिन एसा क्या हो गया की दोनों के रास्ते अलग हो गए ..
.तमिलनाडु की राजनीती में "चिन्नाअम्मा"यानी की छोटी माँ (जयललिता को सभी "अम्मा" के नाम से पुकारते हैं) के नाम से जानी जाने वाली शशिकला नटराजन को कल तक ऐ आई ऐ डी एम् के सुप्रीमो जयललिता के हर राज का भागिदार माना जाता था..यहाँ तक की कयास लगाये जाने लगे थे की शायद जयललिता अपने बाद शशिकला या उनके परिवार के किसी सदस्य को ही राजनीती की अपनी उत्तराधिकारी बना सकती हैं.. ऐसे में अचानक शशिकला को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिए जाने को काफी गंभीर मामला माना जा रहा है.. हालाँकि सुगबुगाहट तो यह है की इस साल मई में जयललिता की सत्ता में जोरदार वापसी के बाद से ही शशिकला और उनके परिवार के सदस्य सरकार के कामकाज में जरुरत से ज्यादा हस्तक्षेप करने लग गए थे.. यहाँ तक की मंत्रियो और आई ऐ एस और आई पी एस अधिकारियो को भी इन्होने इस कदर खडका कर रखा था की जयललिता से पहले ये लोग शशिकला के पास दुवा सलाम के लिए जाने लगे..मंत्री और अधिकारी अपनी समस्या जयललिता के पास रखने की बजे शशिकला के मर्फात काम निकलवाने की कोशिश करने लगे.. यानी की कहा जा रहा है की जयललिता के साथ रहने के बावजूद भी उनकी दोस्त शशिकला एक मायने में सामानांतर सरकार चलने जैसा काम करने लग गयी थी..अपने जिलो के विधायको के साथ शशिकला की नजदीकी भी जयलालितः को नहीं भा रही थी और उसमे उन्हें किसी साजिश का अंश दिखाई दिया.. अपने विश्वस्त अधिकारियो और मंत्रियो से जयललिता को इस तरह के संकेत भी मिलने लगे थे की इस तरह का कदम पर लगाम नहीं लगाया गया तो आने वाले दिनों में शायद शशिकला का यह कदम उनके तख्तापटल का नतीजा तक साबित हो सकता है..यही कारण था की अपने खिलाफ्बगावत की "बू" आने के साथ ही उन्होंने इस तरह का कदम उठाया हो...

कौन है शशिकला

शशिकला नटराजन के पति एम नटराजन सरकारी सेवा में थें. उन्हें एम् जी रामचंद्रन के शाशन काम में जन संपर्क अधिकारी के टूर पर नियुक्त किया गया था.. ..1980 में नटराजन एम् जी आर की नजदीक माने जाने वाली जयललिता के संपर्क में आयें और उनके मेनेजर के रुप में काम करने लगें। कहा जाता है की शशिकला भी उसी दरम्यान जयललिता के नजदीक आई , वही से शुरु हुई दोनो की दोस्ती .. वैसे यह भी सच है की जयललिता के अपनी जुन्दगी में आते ही शशिकला की जिंदगी से उसके पति नटराजन दूर होते चले गए..इतने दूर की न केवल उन्हें अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा बल्कि साल 1990 आते-आते दोनो पति पत्नी एक दुसरे से अलग हो गयें। दुसरे शब्दों में कहे तो आलम यह हो गया की शशिकला ने भी अपने पति के रिश्ते से ज्यादा महत्व अपनी जयललिता से दोस्ती को ही दिया.. जयललिता ने शशिकला के बेटे को अपने बेटे की तरह माना । शशिकला और जयललिता दोनो एक दुजे के लिये समर्पित हो गयें। 1996 के चुनाव के दरम्यान जयललिता की करारी हार के बाद दोनो के रिश्ते में कुछ खटास भी आई लेकिन साल 2001 में जयललिता की सता में वापसी ने सारे गिले-शिकवे दुर कर दियें। लोग तो यहाँ तक कहने लगे की शशिकला किसी समर्पित पत्नी की तरह जयललिता का ख्याल रखती हैं। उनके खान-पान से लेकर , घर गृहस्थी तक की सारी जिम्मेवारी निभाती वैसे शुरुवाती दिनों में शशिकला चेन्नई में अपना एक विडियो पार्लर भी चलती थी और फिल्मो की शौकीन जयललिता उनसे नयी पुरानी फिल्मे मंगाने लगी और इस तरह दोनों के बीच दोस्ताना सम्बन्ध भी बढ़ने लगा. आई ऐ एस अधिकारी चंद्रलेखा ने ही शशिकला को पहली बार जयललिता से मिलवाया था... जयललिता से नजदीकी के बाद इन्होने जे जे टी वी नाम से नया सेटेलाईट चेनल भी शुरू किया था लेकिन विदेशी मुद्रा विनिमय कानून के उल्लंघन के चलते इसे बंद करना पड़ा.. दोनों के बीच दोस्ती किस कदर गहरी थी इसका अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है शशिकला के भतीजे सुधाकरण को जयललिता ने गोद लेकर उसकी धूम धाम से शादी करवाई.. शादी भी ऐसी आलिशान और चकाचौंध कर देने वाली की तमिलनाडु के इतिहास में अब तक उसे याद किया जाता है.... 1991 से 1996 में जब जयललिता मुख्यमंत्री थीं तब शशिकला उनके काफी नजदीक पहुँच चुकी थी.. आलम यह था की दोनों साथ ही एक जैसे साड़ी पहनकर घर से निकला करते थे. इसके बाद जब करूणानिधि की सरकार आई तो साल 1997 में जयललिता के साथ साथ उनकी दोस्त शशिकला को भी तांसी जमीन घोटाला और आय से अधिक संपत्ति के मामले सहित कई भष्ट्राचार के मामलो में आरोपी बनाया गया.. जयललिता जेल गयी लेकिन तब भी शशिकला ने उनका साथ नहीं छोड़ा.. कहा जाता है की दुःख के उन दिनों में शशिकला ही ऐसी थी जिसके साथ जयललिता ने अपने सारे दुःख बटकर दिल के गम को हल्का किया.. यानी की इन दोनों के बीच एक अनाम रिश्ता था और ऐसी प्रेम कहानी भी छुपी हुवी थी जिसमे दोनों एक दुसरे के लिए अपना सब कुछ कुर्बान करते को तेयार रहते .. एक क्रायक्रम में तो एक बार दोनों ने बाकायदा पुरे मंत्रोचारण के साथ एक दुसरे के गले में माला भी डाली थी .दिन था जयललिता के 60 वे जन्म दिन का । 24 फरवरी साल 2008 को जयललिता का साठवां जन्मदिन था ..उस दिन जयललिता अपनी दोस्त शशिकला के साथ नागापटिनम्म जिले में स्थित अमर्तघाटेश्वर मंदिर पहुंची और वहा जन्म दिन के अवसर पर पुजा पाठ करने के उपरांत जयललिता ने शशिकला को और शशिकला ने जयललिता को माला पहनाया । इस मंदिर की खासियत यह है की यहाँ अपने जीवन के साठ एवं अस्सी वर्ष की आयु पुरी कर चुके लोग आते हैं तथा पुजा पाठ के बाद एक रस्म निभाई जाती है जिसे षष्ठीबापुर्थी कहते हैं। इस रस्म में पति-पत्नी एक दुसरे को माला पहनाते हैं तथा इसे सेकेंड मैरिज या पुन: विवाह के रुप में माना जाता है । अब जयललिता का और कोई तो है नहीं ऐसे में उन्होंने शशिकला को ही अपना सब कुछ मानते हुवे उनके गले में माला डाल दी.....हालाँकि शशिकला के साथ अपने इस " अनाम रिश्ते" के बारे में खुद जयललिता ने तो कुछ भी नहीं कहा लेकिन माला पहनाने वाली रस्म ने उनके दिल के दर्द को दर्शा दिया ।.. हालाँकि इसे बाद में पारिवारिक पूजा का नाम दे दिया गया.. फिलहाल जिन्होंने कभी एक दुसरे के सभी दुःख सुख में साथ निभाया और देश दुनिया की तमाम आलोचनाओ के बाद भी एक दूसरे का साथ नहीं छोड़ा उन्ही दो पुरानी सहेलियों के रास्ते अब अलग अलग हो गए.. हम बात कर रहे हैं तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता और उनके हर राज के साथ साथ अब तक के हर दुःख सुख में शरीक रहने वाली शशिकला नटराजन की.. करीब तीन दशक से जयललिता के पोएस गार्डन की एक ही छत के नीचे रहने वाली इन दोनों दोस्तों के बीच मनमुटाव इतना बड़ा की दोनों के रास्ते अलग हो गए और जयललिता ने न केवल उन्हें अपने घर से बाहर का रास्ता दिखा दिया बल्कि उनसे किसी तरह का सम्बन्ध भी न रखने का एलान कर सबको चौका दिया.. श्रीवत्सन,

Tuesday, July 26, 2011

हनुमान जी और उनकी पत्नी का मंदिर


SLUG:- हनुमान और उनकी पत्नी का मंदिर
ANCHOR
संकट मोचन हनुमान जी के ब्रह्मचारी रूप से तो सभी वाकिफ हैं.. तभी तो उन्हें बाल ब्रम्हचारी भी कहा जाता है लेकिन क्या अपने कभी सुना है की हनुमान जी की बाकायदा शादी भी हुवी थी और उनका उनकी पत्नी के साथ एक मंदिर भी है जिसके दर्शन के लिए दूर दूर से लोग आते हैं.. कहा जाता है की हनुमान जी के उनकी पत्नी के साथ दर्शन करने के बाद घर मैं चल रहे पति पत्नी के बीच के सारे तनाव खत्म हो जाते हैं.. पेश हैं ग्रहस्थ हनुमान जी और उनके मंदिर पर Srivatsan ki ख़ास पेशकश

यूँ तो देश विदेश में हनुमान जी के कई मंदिर हैं जहा तरह तरह के रूप में संकट मोचन अपने भक्तो को दर्शन देते हैं.. लेकिन खम्मम जिले में बना हनुमान जी का यह मंदिर काफी मायनों में ख़ास है.. ख़ास इसलिए की यहाँ हनुमान जी अपने ब्रम्हचारी रूप में नहीं बल्कि बल्कि गृहस्थ रूप में विराजमान है .. अपनी पत्नी सुवर्चला के साथ... हनुमान जी के सभी भक्त यही मानते आये हैं की वे बाल ब्रह्मचारी थे. और बाल्मीकि, कम्भ, सहित किसी भी रामायण और रामचरित मानस में बालाजी के इसी रूप का वर्णन मिलता है.. लेकिन पंडितो की माने तो उत्तर रामायण के लव कुश की कथा के बाद हनुमान जी की शादी का जिक्र आता है याहू कारन है की किसी भी रामायण में इसका उल्लेख नहीं है.. पराशर संहिता में भी इसी बात का उल्लेख है.. जिसके अधर पर पंडितो का दावा है की भले ही सभी सदा से ये मानते आए हैं कि मां अंजऩी के लाल, केसरी नंदन और भगवान श्रीराम के अनन्य भक्त महावीर हनुमान बाल ब्रह्मचारी थे। किंतु ये पूर्ण रुप से सत्य नहीं है। हनुमान जी ने बाकायदा विधि विधान से विवाह किया था और उनकी पत्नी भी थी। इसका सबूत है आंध्र प्रदेश के खम्मम ज़िले में बना एक खास मंदिर जो प्रमाण है हनुमान जी की शादी का। इस मंदिर में भगवान बजरंगबली अपनी पत्नी सुवर्चला के साथ विराजते हैं। ये मंदिर याद दिलाता है रामदूत के उस चरित्र का जब उन्हें विवाह के बंधन में बंधना पड़ा था। लेकिन इसका ये अर्थ नहीं कि भगवान हनुमान बाल ब्रह्मचारी नहीं थे। पवनपुत्र का विवाह भी हुआ था और वो बाल ब्रह्मचारी भी थे। किंतु कुछ विशेष परिस्थियों के बन जाने पर बजरंगबली को सुवर्चला के साथ विवाह के बंधन में बंधना पड़ा। खम्मम ज़िले में बना ये मंदिर याद दिलाता है त्रेता युग की उस घटना की जब हनुमान जी ने भगवान सूर्य को अपना गुरु बनाया था। हनुमान, तेज़ी से सूर्य से अपनी शिक्षा ग्रहण कर रहे थे... सूर्य कहीं रुक नहीं सकते थे इसलिए हनुमान जी को सारा दिन भगवान सूर्य के रथ के साथ साथ उड़ना पड़ता और भगवान सूर्य उन्हें तरह-तरह की विद्याओं का ज्ञान देते। लेकिन हनुमान को ज्ञान देते समय सूर्य के सामने एक दिन धर्मसंकट खड़ा हो गया। कुल ९ तरह की नेविकरानी विद्या में से हनुमान को उनके गुरु ने पंचवीर्यकरण यजअणि पांच तरह की विद्या तो सिखा दी लेकिन बाकि बची चार तरह की विद्या विद्याएं और ज्ञान ऐसे भी थे जो केवल किसी विवाहित को ही सिखाए जा सकते थे... किंतु हनुमान पूरी शिक्षा लेने का प्रण कर चुके थे और इससे कम पर वो मानने को राजी नहीं थे। इधर भगवान सूर्य के सामने संकट ये भी था कि वो धर्म के अनुशासन के कारण किसी अविवाहित को कुछ विशेष विद्याएं नहीं सिखला सकते थे। ऐसी स्थिति में सूर्य देव ने हनुमान को विवाह की सलाह दी.. और अपने प्राण को पूरा करने के लिए हनुमान भी विवाह सूत्र में बंधकर शिक्षा ग्रहण करने को तैयार हो गए। लेकिन हनुमान के लिए दुल्हन कौन हो और कहा से वह मिलेगी इसे लेकर सभी चिंतित थे.. ऐसे में सूर्य ने ही अपने शिष्य हनुमान को राह दिखलाई। भगवान सूर्य ने अपनी परम तपस्वी और तेजस्वी पुत्री सुवर्चला को हनुमान के साथ शादी के लिए तैयार कर लिया। इसके बाद हनुमान ने अपनी शिक्षा पूर्ण की और सुवर्चला सदा के लिए अपनी तपस्या में रत हो गई। इस तरह हनुमान भले ही शादी के बंधन में बांध गए हो लेकिन शाररिक रूप से वे आज भी एक ब्रह्मचारी ही हैं पराशर संहिता में तो लिखा गया है की खुद सूर्य ने इस शादी पर यह कहा की यह शादी ब्रह्मांड के कल्याण के लिए ही हुवी है और इससे हनुमान का ब्रह्मचर्य भी प्रभावित नहीं हुवा.. यानी की हनुमान का बाल ब्रह्मचारी होने का व्रत भी बच गया। आंध्र प्रदेश में खम्मम के प्राचीन मंदिर में हनुमान जी अपनी पत्नी सुवर्चला के साथ विराजमान हैं। उस मंदिर में दोनों की साथ-साथ पूजा होती है। सुवर्चला और बजरंगबली ऐसे दंपत्ति के उदाहरण हैं जिन्होंने एक दूसरे की खुशियों और कार्यसिद्धि के लिए अविस्मरणीय त्याग दिया साथ ही एक दूसरे के सच्चे पूरक होने का सच्चा प्रमाण भी दिया। इसीलिए खम्मम के मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां आने वाले विवाहित जोड़ों पर हनुमान जी और मां सुवर्चला का परम आशीर्वाद बरसता है और उनके दांपत्य जीवन में कभी विघ्न नहीं आते।यही करण है की दूर दूर से लोग यहाँ हनुमान के इस स्वरूप के दर्शन के लिए आते हैं.. यह पाराशर संहिता में कहा गया है कि सूर्य ने ज्येष्ठा सूद दशमी पर अपनी बेटी सुवर्चला की शादी की पेशकश की. यह नक्षत्र उत्तरा में बुधवार की थी. ज्येष्ठा सूद दसमी दिन हनुमान विवाह के बारे में "हनुमत कल्याणं " में भी लिखा है!

. खम्मम में बने इस मंदिर को सिंगरेनी खान के शासको ने बनवाया था..लोग पुचाते हैं की हनुमान के पास कौन है हम कहते हैं की वह सूर्य की पुत्री है जिसका हनुमान के साथ विवाह हुवा है.. इन दोनों के विवाह की कथा पुरानो में है.. मंदिर को बनवाने के पीछे ख़ास मकसद भी है.. और वहा आने वाले लोगो के दांपत्य के सारे दुःख दूर होते हैं.. यही करण है की प्राचीन मान्यता वाले इस मंदिर में काफी लोग आते हैं.. हनुमान जी के इस स्वरुप के दर्शन करने.. भगवान सूर्य ने ही इन दोनों का विवाह जग कल्याण कराया था..

बालाजी की बेबस माँ




:- बालाजी की बेबस माँ 

              EXCLUSIVE

दुनिया के सबसे धनी भगवान और करोडो की आस्था के प्रतिक तिरुपति बालाजी के प्रति किसे श्रदा नहीं होगी.. लेकिन बहुत ही कम लोग ही जानते हैं की तिरुपति ही में बालाजी की माँ का भी मंदिर है जो की इन दिनों मायनिंग माफियाओ के कब्जे में गया है.. आलम यह है की सेकड साल पुराने इस मंदिर के गर्भ गृह से बालाजी की माँ की मूर्ति ही चोरी कर ली गयी है लेकिन बालाजी के नाम पर झोली भरने वाले मंदिर प्रशाशन को तो इस मूर्ति की खोज की फिक्र है और ही बालाजी की माँ के मंदिर को बचाने में कोई दिलचस्पी..  

 

---  अवैध खनन के कारन लगभग खत्म होता जा रहा पर्वत और उस पर बना एक सेकड साल पुराना मंदिर.....इस द्रश्य अपने आप में यह बताने के लिए काफी है की एतिहासिक और पुराणिक महत्त्व वाले इस पर्वत और उस पर बने इस प्राचीन मंदिर की दुर्दशा क्या होगी.. यह मंदिर भी कोई एसा वैसा आम मंदिर नहीं है बल्कि यह मंदिर है कलयुग के वैन्कुंठ तिरुपति में रहने वाले भगवान वेंकटेश्वर बालाजी की माँ.. वही वेंकटेश्वर बालाजी जिसके की दशन करोडो लोग तिरुपति बालाजी आते है और जी खोलकर इतना दान देने हैं की सेकड लोग मिलकर भी आसानी से नहीं गिन पाते लेकिन ऐसे धनवान भगवान  बालाजी की माँ के इस अति प्राचीन मंदिर की यह हालत साफ़ बयान करती है की  दोनों हाथो से धन बटोरने की धुन में किस तरह इस मंदिर की अवहेलना की जा रही है..  आपको पहली बार आपको रु--रु कराएगा  भगवान बालाजी की माँ और उनके इस अति प्राचीन और धीरे धीरे अपना अस्तित्व खोते मंदिर से...कभी आस्था का सबसे बड केंद्र माने जाने वाला यह मंदिर कही और नहीं बल्कि तिरुपति शहर से महज 40 किलोमीटर की दूरी स्थित पेरुबंडा गाँव में स्थित है.. और मंदिर की देवी का नाम है "वकुला माता देवी".....  ..इतिहास के पन्नो पर विश्वास करें तो पहाडियों पर स्थित यह मंदिर karib 1300 सालो से अधिक पुराना है.. इसके लिए बाकायदा 50 एकड़ की जमीं भी यहाँ के राजा के दी थी जिसके तहत पहाड के उपरी छोटी पर मंदिर है और उसके नीचे देवी के नाम पर बना पवित्र सरोवर.. जहा कभी हर साल देवी की उत्सव मूर्ति को लाकर एक बड जलसा आयोजित किया जाता था.. यही नहीं यहाँ कई और छोटे मंदिर भी कभी हुवा करते थे..     और नीचे से पहाड़ी की छोटी पर बने देवी माँ के दर्शनों के लिए जाने के लिए बाकायदा सीढियाँ भी हुवा करती थी.स्थल पुराण में चोला शासको द्वारा बनाये गए इस मंदिर के बारे में उल्लेख भी मिलता है...लेकिन अवैध खनन ने केवल पवित्र सरोवर की यह दुर्गति बना दी बल्कि इन सीढियों को भी तोड़ते हुवे पूरे पहाड की ही क्या हालत कर दी है ये द्रश्य हकीकत बताने के लिए काफी है..    


 --- जैसे तैसे इस पहाडियों पर चढ़कर मंदिर के ऊपर पहुंचे पर आँखे और भी नाम हो जाती है क्यों की कभी जिस जगह हजारो लाखो लोग श्रदा से आते थे आज वह जगह किस कदर खँडहर बन चुकी है.. एसा लगता है मानो कभी यहाँ कुछ रहा ही नहीं हो.. जगह जगह से टूटे हुवे दीवारों के पत्थर दीवारों पर उगे हुवे जंगली पौधे और मंदिर के नाम पर खँडहर में तब्दील हुवी जगह.... जबकि हकीकत यह है की दो दशको पहले तक इसी मंदिर में बना भोजन और प्रसाद यहाँ की देवी को भोज लगाकर तिरुपति बालाजी के मंदिर में तिरुमाला ले जाया जाता था.... यहाँ बकायदा तिरुपति बालाजी मंदिर देवस्थान द्वारा पूजा पाठ के लिए नियुक्त पंडित भी थे  हर रोज पूजा अर्चना भी होती थी ...और बकायदा माता के इस मंदिर से बालाजी को भोग लगाने के लिए तिरुपति बालाजी मंदिर से पंडित भी आते थे..  .लेकिन इन माफियाओ के कारन बालाजी मंदिर प्रशासन ने यहाँ आना क्या बंद किया की मानो धनवान बेटे तिरुपति बालाजी के रहने के बाद उनकी माँ एक तरह से अनाथ ही हो गयी.... मंदिर खँडहर हो गया, जगह जगह से दीवारे टूट फुट गयी.. उसमे लगे पत्थर नीचे गिरे हैं .. ....... यहाँ तक होता तो कुछ ठीक ही था लेकिन देखरेख के आभाव में इस मंदिर की हालत इतनी राब हो गयी की सालो पुराने इस मंदिर के गर्भ गृह में लगी एतिहासिक "वकुला माता देवी".की मूर्ति को ही कुछ लोग चुराकर ले गए.. अचरज की बात तो यह है की आज तक किसी ने भी किसी भी पुलिस स्टेशन में इस दुर्लभ और प्राचीन मूर्ति की चोरी की शिकायत तक दर्ज नहीं करायी है..     

 

-- तिरुपति बालाजी के मंदिर में काम करने वाले सभी कर्मचारियों के माता पिता होंगे जब ये लोग भगवान बालाजी की माँ की ही हिफाज़त नहीं कर सके तो भला अपने माँ बाप की सेवा की इनसे उम्मीद कैसे की जा सकती है,,,?ये सभी लोग बालाजी के नाम पर रुपया छपने में लगे हैं जगह जगह भगवान को ले जाकर पूजा पाठ और सामूहिक ववाह क्रायक्रम करवाया जाता है उनकी माँ के मंदिर में पूजा करना इन्हें कैसे याद नहीं रहा?  

 

--- वैसे इस मंदिर की सुरक्षा की जिम्मेदारी तूरूपाती बालाजी मंदिर प्रशासन की जीतनी है उससे कई ज्यादा पुरातत्व विभाग की है. आंध्र प्रदेश पुरातत्व विभाग को मंदिर की इस दुर्दशा की जानकारी तो है लेकिन उसकी बेबसी इसी बयान से साफ़ झलक जाती है की वह चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं.. 

  -- साफ़ है की बालाजी मंदिर देवस्थानम हो या पुरातत्व विभाग या फिर अवैध खनन माडिया.. इन सभी के साथ हम सभी भी कही कही जिम्मेदार है इस एतिहासिक और प्राचीन महत्त्व के मंदिर के खँडहर बनाने और इसकी इतनी बुरी दुर्दशा के..और उम्मीद की जानी चाहिए की कम से कम देर से ही सही अब तो इस मंदिर को बचाने के लिए कोशिशे शुरू हो जाएगी.. श्रीवत्सन,तिरुपति

 

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         STORY -2


 

SLUG:-     कौन है "वकुला माता देवी"..

 

पौराणिक मान्यताओ के अनुसार वकुला माता देवी को भगवान वेंकटेश्वर बालाजी की माँ है.. और इन्हें देवकी का अवतार और अन्नपूर्ण की देवी भी कहा जाता है.. प्रचलित कथाओ के अनुसार द्वापर युग में भले ही देवकी माँ ने भगवान कृष्ण को जन्म दिया था लेकिन कंस के डर से उन्हें नन्द महाराज के घर यशोदा के पास छोड दिया था.. जहा यशोदा माँ ने ही कृष्ण का लालन पालन किया था. कहा जाता है की कंस के संहार  और अपनी मुक्ति के बाद जब देवकी ने भगवान कृष्ण के अवतारी रूप को पहचानते हुवे उनसे लालन पालन नहीं करने के सोभाग्य की शिकायत की तो कृष्ण ने उन्हें जनम देने वाली देवकी माँ की ममता का ख्याल करते हुवे उन्हें कलयुग में फिर से केवल अपनी माँ बनाने की बात कही बल्कि उन्ही के हाथो से खाना खाने का भी वादा किया.. और यही देवकी कलयुग में "वकुला माता देवी"..का अवतार हैं.. हालाँकि इस जनम में उनके गर्भ से बालाजी के जन्म की कहानी तो नहीं मिलती लेकिन अपने पुत्र की लाश में सभी लोगो को जे भरकर खाना खिलने की कई कथाये यहाँ प्रचलित हैं ..इस उम्मीद में की उनके हाथो से कभी बालाजी भी खाना खा ले.. और जब बालाजी उन्हें मिले तो यही कुछ दिन बालाजी का भी  निवास रहा.. कहा जाता है की बकायदा वकुला माता देवी" ने ही बतौर उनकी माँ के स्थान पर रहकर भगवान बालाजी का विवाह भी पद्मावती देवी से करवाया था.. इसके बाद बालाजी ने जब तिरुपति की सप्तागिरी  पहाडियों के पर रहने की खवाइश जताई तो वकुला माता देवी" ने उनके इसकी इजाजत दे दी .. इस मंदिर से बालाजी के मंदिर वाली सप्तागिरी वाली पहाड़ियां साफ़ नज़र आती है.. स्थल पुराण में चोला शासको द्वारा karib 1300 saalpahle बनाये गए इस मंदिर के बारे में उल्लेख भी मिलता है.. कहा जाता है की दूर रहकर भी भगवान अपनी माँ के हर रोज इन्ही पहाडियों से दर्शन करते थे..  सालो तक इसी "वकुला माता देवी" के मंदिर में चूल्हे पर बना खाना हर रोज सुबह सुबह भगवान बालाजी के मंदिर भेजा जाता था.. जिसे प्रसाद मानकर बालाजी के भोग लगाया जाता हैं.. कहा जाता है की यह खाना या प्रसाद एक माँ अपने बेटे के लिए हर रोज बनाकर भेजती थी.... और बालाजी कुछ खाकर अपने मंदिर में आने वाले भक्तो को अपनी माँ के हाथ का बना बाकी प्रसाद देते थे.  लेकिन बालाजी मंदिर प्रसाशन ने इस मंदिर की सुध बुध लेनी छोड दी और इस पर माफियाओ की नज़र लग गयी... तो पहले जहा यह परंपरा ही खत्म हो गयी थी वही जब "वकुला माता देवी" की मूर्ति की चोरी हो जाने के बाद मानो सभी इसकी सुध बुध लेने के बचने लगे.. इसकी दुर्दशा देखकर यही अंदाज़ा लगाया जा सकता है की यह किसी भी वक्त ढह सकता है..और यदि एसा होता है तो इस मंदिर के साथ ही ढहेगी इसके साथ जुडी हुवी आस्था, विश्वास और एक एतिहसिक धरोहर ....  वैसे तस्वीरे साफ़ बता रही है की अब तक यहाँ के 60 फीसदी पहाड का माफिया खनन कर  चुके हैं..जबकि हकीकत यह है की इतने प्राचीन मंदिर के 1 किलो मीटर का दायर पुरातत्व विभाग के संरक्षण में आता है.. और कोई भी इतने प्राचीन मंदिर वाले पहाड को किसी भी कीमत पर दोहन की इजाजत नहीं दे सकता.. वैसे एसा नहीं है की इस मंदिर को बचाने की कोई कोशिश ही नहीं की गयी .. इस गाँव के करीब 400 लोगो ने साल 2005  में भगवान तिरुपति बालाजी की हुंडी में एक मेमोरेंडम डालकर अपनी माँ के इस मंदिर को बचाने की गुहार की थी.. इसके बाद कहा जाता है की एक चमत्कार हुवा क्यों की साल 2006 में बालाजी मंदिर प्रशासन ने इस मंदिर और यहाँ लगी देवी की प्रतिमा को बालाजी मंदिर की पहाडियों पर चढ़ने के लिए शुरू होने वाली अलापिरी की पहाडियों पर शिफ्ट करने की योजना बनायीं थी और इसके लिए तिरुपति बालाजी देवस्थानम ने 80 लाख रूपये मंजूर भी किये थे.. लेकिन इस मंदिर के ही कुछ पूजारियो और धर्म के ठेकेदारो ने "वकुला माता देवी" के मंदिर को शिफ्ट करने की बजाय उनके मूल स्थान पर बने मंदिर को ही ठीक करने की जिद्द करना शुरू कर दिया था. इनके विरोध का कारन यह भी था की किसी भी माँ के मंदिर को बेटे के मंदिर के नीचे या दुसरे शब्दों में पानओ के पास बनाना हिन्दू धर्म का खिलाफ होगा...  मामला इतना गरमा गया की तिरुपति बालाजी देवस्थान को अपना इस प्रस्ताव ही स्थगित करना पड.. अगर उस वक्त बालाजी की माता "वकुला माता देवी"   का मंदिर बना दिया जाता तो भले ही प्राचीन मंदिर को नहीं तो कम से कम उनके प्राचीन मंदिर में स्थापित गर्भ गृह की मूर्ति को तो बचा की लिया जाना संभव हो पाता.. श्रीवत्सन, तिरुपति , न्यूज 24

 

 

 

 STORY -3

 

SLUG:- अकूत संपत्ति है बालाजी के खजाने में 

ANCHOR कितनी है बालाजी की संपत्ति.. बालाजी मंदिर की कुल संपत्ति अरबो में है.. भक्त, भगवान और भगवान के अकूत खजाने से भरा पड है अपना देश.. तिरुपति बालाजी का मंदिर भी दान से मालामाल है ...भक्तो के चढावे से मालामाल है भगवान और भरा पड है उनका खजाना..  हीरे, जवाहरात, सोने चांदी और नकदी हर रूप में दौलत यहाँ भरी पड़ी है.. दुनिया के सबसे आमिर भगवान है बालाजी ... इनके भक्तो में आम से ास और खास से खास्मास्खास. राजनितिक, उद्घ्योग जगत सहित सभी छोटे बड क्षेत्रो की हस्तियाँ बालाजी के दरबार में मत्था टेकने आते हैं.. देश विदेश से हर साल करीब 35 लाख लोग बालाजी के दर्शन करने आते हैं और जी खोलकर चढाव चढ़ते हैं. एक अनुमान के मुताबिक बालाजी भगवान के पास कुल 52 हजार करोड रूपये से भी अधिक की संपत्ति है..इसमें से करीब 20 टन तो सोने, चांदी और हीरे के गहने ही हैं.....  मंदिर का सालाना बजट 1200 करोड रूपये हैं 600 करोड रूपये से भी अधिक का तो चढाव तो यहाँ चढ़ता है.. बालाजी के दान पात्र में 350 करोड रूपये नकद चढाव चढ़ता है. हर साल 300 किलो सोना और 550 किलो से भी अधिक चांदी के जेवर का भगवान को समर्पित किया जाता है.. बालाजी के मंदिर में जो लोग बाल उतरवाने आते हैं उससे भी बालाजी को 150 करोड रूपये की कमाई हो जाती है.. बालाजी के मंदिर के 1500 करोड रूपये से ज्यादा की रकम तमाम बेंको में फिक्स डिपोजिट के तौर पर जमा है. और इससे हर साल करीब 175 करोड रूपये ब्याज के तौर पर ही मंदिर प्रसाशन को मिल जाते हैं.. . राजा हो या रंग सभी यहाँ आकर जी खोलकर चढाव चढाते है ... हर रोज करीब 3 लाख  से भी ज्यादा बालाजी का लड्डू प्रसाद बिक जाते हैं जिसने 42 करोड रूपये की अलग से कमाई हो जाती है.. 

साफ़ है की इसमें से यदि चंद रूपये भी बालाजी की माँ के इस प्राचीन मंदिर के संरक्षण पर खर्च कर दिया जाता तो शायद इस प्राचीन मंदिर की यह दुर्दशा नहीं होती..