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Tuesday, July 26, 2011

बालाजी की बेबस माँ




:- बालाजी की बेबस माँ 

              EXCLUSIVE

दुनिया के सबसे धनी भगवान और करोडो की आस्था के प्रतिक तिरुपति बालाजी के प्रति किसे श्रदा नहीं होगी.. लेकिन बहुत ही कम लोग ही जानते हैं की तिरुपति ही में बालाजी की माँ का भी मंदिर है जो की इन दिनों मायनिंग माफियाओ के कब्जे में गया है.. आलम यह है की सेकड साल पुराने इस मंदिर के गर्भ गृह से बालाजी की माँ की मूर्ति ही चोरी कर ली गयी है लेकिन बालाजी के नाम पर झोली भरने वाले मंदिर प्रशाशन को तो इस मूर्ति की खोज की फिक्र है और ही बालाजी की माँ के मंदिर को बचाने में कोई दिलचस्पी..  

 

---  अवैध खनन के कारन लगभग खत्म होता जा रहा पर्वत और उस पर बना एक सेकड साल पुराना मंदिर.....इस द्रश्य अपने आप में यह बताने के लिए काफी है की एतिहासिक और पुराणिक महत्त्व वाले इस पर्वत और उस पर बने इस प्राचीन मंदिर की दुर्दशा क्या होगी.. यह मंदिर भी कोई एसा वैसा आम मंदिर नहीं है बल्कि यह मंदिर है कलयुग के वैन्कुंठ तिरुपति में रहने वाले भगवान वेंकटेश्वर बालाजी की माँ.. वही वेंकटेश्वर बालाजी जिसके की दशन करोडो लोग तिरुपति बालाजी आते है और जी खोलकर इतना दान देने हैं की सेकड लोग मिलकर भी आसानी से नहीं गिन पाते लेकिन ऐसे धनवान भगवान  बालाजी की माँ के इस अति प्राचीन मंदिर की यह हालत साफ़ बयान करती है की  दोनों हाथो से धन बटोरने की धुन में किस तरह इस मंदिर की अवहेलना की जा रही है..  आपको पहली बार आपको रु--रु कराएगा  भगवान बालाजी की माँ और उनके इस अति प्राचीन और धीरे धीरे अपना अस्तित्व खोते मंदिर से...कभी आस्था का सबसे बड केंद्र माने जाने वाला यह मंदिर कही और नहीं बल्कि तिरुपति शहर से महज 40 किलोमीटर की दूरी स्थित पेरुबंडा गाँव में स्थित है.. और मंदिर की देवी का नाम है "वकुला माता देवी".....  ..इतिहास के पन्नो पर विश्वास करें तो पहाडियों पर स्थित यह मंदिर karib 1300 सालो से अधिक पुराना है.. इसके लिए बाकायदा 50 एकड़ की जमीं भी यहाँ के राजा के दी थी जिसके तहत पहाड के उपरी छोटी पर मंदिर है और उसके नीचे देवी के नाम पर बना पवित्र सरोवर.. जहा कभी हर साल देवी की उत्सव मूर्ति को लाकर एक बड जलसा आयोजित किया जाता था.. यही नहीं यहाँ कई और छोटे मंदिर भी कभी हुवा करते थे..     और नीचे से पहाड़ी की छोटी पर बने देवी माँ के दर्शनों के लिए जाने के लिए बाकायदा सीढियाँ भी हुवा करती थी.स्थल पुराण में चोला शासको द्वारा बनाये गए इस मंदिर के बारे में उल्लेख भी मिलता है...लेकिन अवैध खनन ने केवल पवित्र सरोवर की यह दुर्गति बना दी बल्कि इन सीढियों को भी तोड़ते हुवे पूरे पहाड की ही क्या हालत कर दी है ये द्रश्य हकीकत बताने के लिए काफी है..    


 --- जैसे तैसे इस पहाडियों पर चढ़कर मंदिर के ऊपर पहुंचे पर आँखे और भी नाम हो जाती है क्यों की कभी जिस जगह हजारो लाखो लोग श्रदा से आते थे आज वह जगह किस कदर खँडहर बन चुकी है.. एसा लगता है मानो कभी यहाँ कुछ रहा ही नहीं हो.. जगह जगह से टूटे हुवे दीवारों के पत्थर दीवारों पर उगे हुवे जंगली पौधे और मंदिर के नाम पर खँडहर में तब्दील हुवी जगह.... जबकि हकीकत यह है की दो दशको पहले तक इसी मंदिर में बना भोजन और प्रसाद यहाँ की देवी को भोज लगाकर तिरुपति बालाजी के मंदिर में तिरुमाला ले जाया जाता था.... यहाँ बकायदा तिरुपति बालाजी मंदिर देवस्थान द्वारा पूजा पाठ के लिए नियुक्त पंडित भी थे  हर रोज पूजा अर्चना भी होती थी ...और बकायदा माता के इस मंदिर से बालाजी को भोग लगाने के लिए तिरुपति बालाजी मंदिर से पंडित भी आते थे..  .लेकिन इन माफियाओ के कारन बालाजी मंदिर प्रशासन ने यहाँ आना क्या बंद किया की मानो धनवान बेटे तिरुपति बालाजी के रहने के बाद उनकी माँ एक तरह से अनाथ ही हो गयी.... मंदिर खँडहर हो गया, जगह जगह से दीवारे टूट फुट गयी.. उसमे लगे पत्थर नीचे गिरे हैं .. ....... यहाँ तक होता तो कुछ ठीक ही था लेकिन देखरेख के आभाव में इस मंदिर की हालत इतनी राब हो गयी की सालो पुराने इस मंदिर के गर्भ गृह में लगी एतिहासिक "वकुला माता देवी".की मूर्ति को ही कुछ लोग चुराकर ले गए.. अचरज की बात तो यह है की आज तक किसी ने भी किसी भी पुलिस स्टेशन में इस दुर्लभ और प्राचीन मूर्ति की चोरी की शिकायत तक दर्ज नहीं करायी है..     

 

-- तिरुपति बालाजी के मंदिर में काम करने वाले सभी कर्मचारियों के माता पिता होंगे जब ये लोग भगवान बालाजी की माँ की ही हिफाज़त नहीं कर सके तो भला अपने माँ बाप की सेवा की इनसे उम्मीद कैसे की जा सकती है,,,?ये सभी लोग बालाजी के नाम पर रुपया छपने में लगे हैं जगह जगह भगवान को ले जाकर पूजा पाठ और सामूहिक ववाह क्रायक्रम करवाया जाता है उनकी माँ के मंदिर में पूजा करना इन्हें कैसे याद नहीं रहा?  

 

--- वैसे इस मंदिर की सुरक्षा की जिम्मेदारी तूरूपाती बालाजी मंदिर प्रशासन की जीतनी है उससे कई ज्यादा पुरातत्व विभाग की है. आंध्र प्रदेश पुरातत्व विभाग को मंदिर की इस दुर्दशा की जानकारी तो है लेकिन उसकी बेबसी इसी बयान से साफ़ झलक जाती है की वह चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं.. 

  -- साफ़ है की बालाजी मंदिर देवस्थानम हो या पुरातत्व विभाग या फिर अवैध खनन माडिया.. इन सभी के साथ हम सभी भी कही कही जिम्मेदार है इस एतिहासिक और प्राचीन महत्त्व के मंदिर के खँडहर बनाने और इसकी इतनी बुरी दुर्दशा के..और उम्मीद की जानी चाहिए की कम से कम देर से ही सही अब तो इस मंदिर को बचाने के लिए कोशिशे शुरू हो जाएगी.. श्रीवत्सन,तिरुपति

 

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         STORY -2


 

SLUG:-     कौन है "वकुला माता देवी"..

 

पौराणिक मान्यताओ के अनुसार वकुला माता देवी को भगवान वेंकटेश्वर बालाजी की माँ है.. और इन्हें देवकी का अवतार और अन्नपूर्ण की देवी भी कहा जाता है.. प्रचलित कथाओ के अनुसार द्वापर युग में भले ही देवकी माँ ने भगवान कृष्ण को जन्म दिया था लेकिन कंस के डर से उन्हें नन्द महाराज के घर यशोदा के पास छोड दिया था.. जहा यशोदा माँ ने ही कृष्ण का लालन पालन किया था. कहा जाता है की कंस के संहार  और अपनी मुक्ति के बाद जब देवकी ने भगवान कृष्ण के अवतारी रूप को पहचानते हुवे उनसे लालन पालन नहीं करने के सोभाग्य की शिकायत की तो कृष्ण ने उन्हें जनम देने वाली देवकी माँ की ममता का ख्याल करते हुवे उन्हें कलयुग में फिर से केवल अपनी माँ बनाने की बात कही बल्कि उन्ही के हाथो से खाना खाने का भी वादा किया.. और यही देवकी कलयुग में "वकुला माता देवी"..का अवतार हैं.. हालाँकि इस जनम में उनके गर्भ से बालाजी के जन्म की कहानी तो नहीं मिलती लेकिन अपने पुत्र की लाश में सभी लोगो को जे भरकर खाना खिलने की कई कथाये यहाँ प्रचलित हैं ..इस उम्मीद में की उनके हाथो से कभी बालाजी भी खाना खा ले.. और जब बालाजी उन्हें मिले तो यही कुछ दिन बालाजी का भी  निवास रहा.. कहा जाता है की बकायदा वकुला माता देवी" ने ही बतौर उनकी माँ के स्थान पर रहकर भगवान बालाजी का विवाह भी पद्मावती देवी से करवाया था.. इसके बाद बालाजी ने जब तिरुपति की सप्तागिरी  पहाडियों के पर रहने की खवाइश जताई तो वकुला माता देवी" ने उनके इसकी इजाजत दे दी .. इस मंदिर से बालाजी के मंदिर वाली सप्तागिरी वाली पहाड़ियां साफ़ नज़र आती है.. स्थल पुराण में चोला शासको द्वारा karib 1300 saalpahle बनाये गए इस मंदिर के बारे में उल्लेख भी मिलता है.. कहा जाता है की दूर रहकर भी भगवान अपनी माँ के हर रोज इन्ही पहाडियों से दर्शन करते थे..  सालो तक इसी "वकुला माता देवी" के मंदिर में चूल्हे पर बना खाना हर रोज सुबह सुबह भगवान बालाजी के मंदिर भेजा जाता था.. जिसे प्रसाद मानकर बालाजी के भोग लगाया जाता हैं.. कहा जाता है की यह खाना या प्रसाद एक माँ अपने बेटे के लिए हर रोज बनाकर भेजती थी.... और बालाजी कुछ खाकर अपने मंदिर में आने वाले भक्तो को अपनी माँ के हाथ का बना बाकी प्रसाद देते थे.  लेकिन बालाजी मंदिर प्रसाशन ने इस मंदिर की सुध बुध लेनी छोड दी और इस पर माफियाओ की नज़र लग गयी... तो पहले जहा यह परंपरा ही खत्म हो गयी थी वही जब "वकुला माता देवी" की मूर्ति की चोरी हो जाने के बाद मानो सभी इसकी सुध बुध लेने के बचने लगे.. इसकी दुर्दशा देखकर यही अंदाज़ा लगाया जा सकता है की यह किसी भी वक्त ढह सकता है..और यदि एसा होता है तो इस मंदिर के साथ ही ढहेगी इसके साथ जुडी हुवी आस्था, विश्वास और एक एतिहसिक धरोहर ....  वैसे तस्वीरे साफ़ बता रही है की अब तक यहाँ के 60 फीसदी पहाड का माफिया खनन कर  चुके हैं..जबकि हकीकत यह है की इतने प्राचीन मंदिर के 1 किलो मीटर का दायर पुरातत्व विभाग के संरक्षण में आता है.. और कोई भी इतने प्राचीन मंदिर वाले पहाड को किसी भी कीमत पर दोहन की इजाजत नहीं दे सकता.. वैसे एसा नहीं है की इस मंदिर को बचाने की कोई कोशिश ही नहीं की गयी .. इस गाँव के करीब 400 लोगो ने साल 2005  में भगवान तिरुपति बालाजी की हुंडी में एक मेमोरेंडम डालकर अपनी माँ के इस मंदिर को बचाने की गुहार की थी.. इसके बाद कहा जाता है की एक चमत्कार हुवा क्यों की साल 2006 में बालाजी मंदिर प्रशासन ने इस मंदिर और यहाँ लगी देवी की प्रतिमा को बालाजी मंदिर की पहाडियों पर चढ़ने के लिए शुरू होने वाली अलापिरी की पहाडियों पर शिफ्ट करने की योजना बनायीं थी और इसके लिए तिरुपति बालाजी देवस्थानम ने 80 लाख रूपये मंजूर भी किये थे.. लेकिन इस मंदिर के ही कुछ पूजारियो और धर्म के ठेकेदारो ने "वकुला माता देवी" के मंदिर को शिफ्ट करने की बजाय उनके मूल स्थान पर बने मंदिर को ही ठीक करने की जिद्द करना शुरू कर दिया था. इनके विरोध का कारन यह भी था की किसी भी माँ के मंदिर को बेटे के मंदिर के नीचे या दुसरे शब्दों में पानओ के पास बनाना हिन्दू धर्म का खिलाफ होगा...  मामला इतना गरमा गया की तिरुपति बालाजी देवस्थान को अपना इस प्रस्ताव ही स्थगित करना पड.. अगर उस वक्त बालाजी की माता "वकुला माता देवी"   का मंदिर बना दिया जाता तो भले ही प्राचीन मंदिर को नहीं तो कम से कम उनके प्राचीन मंदिर में स्थापित गर्भ गृह की मूर्ति को तो बचा की लिया जाना संभव हो पाता.. श्रीवत्सन, तिरुपति , न्यूज 24

 

 

 

 STORY -3

 

SLUG:- अकूत संपत्ति है बालाजी के खजाने में 

ANCHOR कितनी है बालाजी की संपत्ति.. बालाजी मंदिर की कुल संपत्ति अरबो में है.. भक्त, भगवान और भगवान के अकूत खजाने से भरा पड है अपना देश.. तिरुपति बालाजी का मंदिर भी दान से मालामाल है ...भक्तो के चढावे से मालामाल है भगवान और भरा पड है उनका खजाना..  हीरे, जवाहरात, सोने चांदी और नकदी हर रूप में दौलत यहाँ भरी पड़ी है.. दुनिया के सबसे आमिर भगवान है बालाजी ... इनके भक्तो में आम से ास और खास से खास्मास्खास. राजनितिक, उद्घ्योग जगत सहित सभी छोटे बड क्षेत्रो की हस्तियाँ बालाजी के दरबार में मत्था टेकने आते हैं.. देश विदेश से हर साल करीब 35 लाख लोग बालाजी के दर्शन करने आते हैं और जी खोलकर चढाव चढ़ते हैं. एक अनुमान के मुताबिक बालाजी भगवान के पास कुल 52 हजार करोड रूपये से भी अधिक की संपत्ति है..इसमें से करीब 20 टन तो सोने, चांदी और हीरे के गहने ही हैं.....  मंदिर का सालाना बजट 1200 करोड रूपये हैं 600 करोड रूपये से भी अधिक का तो चढाव तो यहाँ चढ़ता है.. बालाजी के दान पात्र में 350 करोड रूपये नकद चढाव चढ़ता है. हर साल 300 किलो सोना और 550 किलो से भी अधिक चांदी के जेवर का भगवान को समर्पित किया जाता है.. बालाजी के मंदिर में जो लोग बाल उतरवाने आते हैं उससे भी बालाजी को 150 करोड रूपये की कमाई हो जाती है.. बालाजी के मंदिर के 1500 करोड रूपये से ज्यादा की रकम तमाम बेंको में फिक्स डिपोजिट के तौर पर जमा है. और इससे हर साल करीब 175 करोड रूपये ब्याज के तौर पर ही मंदिर प्रसाशन को मिल जाते हैं.. . राजा हो या रंग सभी यहाँ आकर जी खोलकर चढाव चढाते है ... हर रोज करीब 3 लाख  से भी ज्यादा बालाजी का लड्डू प्रसाद बिक जाते हैं जिसने 42 करोड रूपये की अलग से कमाई हो जाती है.. 

साफ़ है की इसमें से यदि चंद रूपये भी बालाजी की माँ के इस प्राचीन मंदिर के संरक्षण पर खर्च कर दिया जाता तो शायद इस प्राचीन मंदिर की यह दुर्दशा नहीं होती.. 

 

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