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Monday, September 10, 2012
बेबस पिता या बेबस बेटा
बेबस पिता या बेबस बेटा
आज मेरे हैदराबाद के मकान मालिक अचानक मेरे घर आये और उन्होने मुझसे मेरा कंप्यूटर युस करने की अनुमति मांगी..मेने भी दी.. उस वक़्त वे बड़े खुश नज़र आ रहे थे उन्होंने कहा की आज उन्हें बड़े बेटे का जनम दिन है और वे उसे बधाई सन्देश देना चाहते हैं... मैंने उन्हें कंप्यूटर ऑन करने दिया.. और वहां से यह सोचकर चला गया की कुछ देर मेल करेंगे और चले जायेंगे.. लेकिन करीब 1 घंटे बाद भी वे कंप्यूटर के सामने ही बेठे रहे और कुछ कर रहे थे तो सोचा शायद उन्हें कुछ परेशानी आ रही होगी और पता नहीं क्या सुझा उनके पास चला गया और पुचा अंकल क्या कंप्यूटर ठीक काम नहीं कर रहा था तो देखकर मुझे झटका लगा क्यों की उस 60 साल के शख्स की आँखों से आसू आ रहे थे और कंप्यूटर मैं अच्छी खासी स्पीड होने के बाद भी वे बमुश्किल 10 -12 लाईने ही अपने बेटे के नाम पर टाईप कर पाए थे और उसे मेरे ही सामने मेल कर दिया,,.. लेकिन हमेशा हसमुख रहने वाले उस शख्स की आँखों मैं आंसू .. बात मेरी कुछ समझ नहीं आ रही थी वह भी उस दिन जिस दिन उनके बड़े बेटे का जन्म दिन था और वह विदेश में कुछ दिनों की ट्रेंनिंग के लिए गया था.. अचानक उन्हें भी न जाने क्या सुझा और कहा की : श्रीवत्स क्या तुम वह मेल पढना चाहोगे जो मैंने मेरे बेटे को लिखा है... मैंने भी हां भर दिया .. और मेल पड़ा ओ उसमे लिखी वह 10 -12 मेरी समझ से कुछ बहार वाली थी क्यों की उन्होंने अपने बेटे के लम्बे जीवन की तो कमाना की ही साथ ही उसे सब कुछ सहने की ताकत देने की भी इस्वर से प्राथन कर कुछ ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जो की आम टूर पर केवल अध्यात्मिक गुर ही किसी प्रवचन के दौरान किया करते हैं.. जब मैंने इसका कारन उनसे पूछ तो उनके दिल का दर्द सामने आ ही गया.. उन्होंने बताया की उन्होंने अपने बेटे की बड़े ही अरमानो और धूमधाम से शादी करीब 5 साल पहले की थी लेकिन शादी के चंद ही महीनो बाद उसकी पढ़ी लिखी और अचानक लखपति ( पारंपरिक नहीं) बनाने वाले परिवार से आई बीवी ने अलग रहने का इरादा अपने पति को बता दिया और इन दोनों की ख़ुशी के खातिर किस तरह उन्होंने दिल पर पत्थर रखकर उन्होंने इसकी इजाजत दी..अलग रहने के बाद हफ्ते दस दिन में वे लोग आते लेकिन जल्द ही पहले महीने और फिर कई कई महीने तमीं एक बार वे उनसे मिलने को आने लाहे.. बेटा जब अकेले अपने माँ बाप से मिलने आता तो उसने घर पर मानो महाभारत ही मच जाता.. यहाँ तक की बहु से एक दिन साफ़ कह दिया की उसे सास ससुर का उसके घर आये दिन आकार मिलना अच्छा नहीं लगता.. यही नहीं घर में जब पौते का जन्म हुवा तो दादा दादी होने के नाते उन्हें करीब 10 दिन बाद इसकी सूचना दी गयी.. जिसकी मजबूरी भी बेटे के उन्हें अपने पत्नी के बयान( निर्देश) को बताकर उन्हें बता दी.. अन वे महीनो महीनो तरस जाते हैं अपने बेटे पौते को देखने .. पौता करीब १ साल का हो चूका है लेकिन बमुश्किल उन्होंने अपने घर के चिराग को आज तक उन्हें 5 -6 बार ही देखने का नसीब हुवा है.. छोटे बेटे की शादी में बहु भी आई लेकिन महज मेहमान बनकर महज 1 -2 घंटे में ही वह अपने पति को लेकर जबरदस्ती ऐसे चली गयी मानो उसका इस शादी से कोई सरोकार ही नहीं हो.. . लेकिन अपने बेटे के घर की शान्ति को बरक़रार रखने के लिए के लिए उन्होंने इन हालातो से भी समझोता कर लिया..साथ ही उन्होंने(सिद्दया जी ) ने साफ़ कर दिया की बहु की मर्जी के खिलाफ उनका बेटा भी उके पास नहीं आये क्यों की वे नहीं चाहते की उनके कारन उनके जवान बेटे के घर की शान्ति भंग हो... इस वृद्द शख्स ने बताया की उनका बेटा आज भी उनसे मिलने आना चाहता है लेकिन बहु एसा नहीं चाहती और बेटे के पिता से मिलने पर मरने मरने की धमकी तक दे देती है.. उनकी इस दुःख भरी दस्ता को सुनाने के बाद हालाँकि में यह तो नहीं समझ सका की आखिर बहु को अपने ससुराल वालो से क्या दुश्मनी है लेकिन इतना जरुर समझ में आ गया की बुढापे में एक बाप भले ही कितना ही बेबस, मजबूर और लाचार क्यों न हो जाए लेकिन हर हालत में वह यही चाहता है की उसके बेटा का परिवार सुखी रहे.. लेकिन यहाँ यह भी समझ में नहीं आ रहा है की यहाँ वह बेटा भी क्या करें. उस बेटे को क्या कहा जाए जिसे पालने पोषने और जिंदगी में कुछ बनाने के लिए जिस माँ बाप ने अपनी तमाम जिंदगी के सुख कुर्बान कर दी वही बेटा अब अपने माँ बाप की सेवा करने की बजाय उन्ही को ठेस नहीं पहुंचाने के लिए उन्ही के सख्त निर्देश का पालन करते हुवे अपनी उस बीवी के साथ रहने को मजबूर हो रहा है जो की उन्हें उसी के माँ बाप से अलग थलग कर रही है..
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