कहते है की खुदा सब कुछ देता है लेकिन उसके साथ काफी कुछ ले भी लेता है. एसा ही कुछ मेरे साथ भी हुवा है., ऐसा मुझे लगता है. मुझे शुरू से ही छोटा शहर, माता पिता दूर दुसरे रिश्तेदारों के बीच रहना, परंपरा और संस्कृति को फोलो करना काफी पसंद था. उम्मीद थी की मैं अपने छोटे से शहर मैं ही रहू लेकिन कहते है न की किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था और मैं वही आ गया जहा कभी नहीं आना चाहता था.. आज मैं दक्षिण भारत में हूँ लेकिन हमेशा इस बात को सोचता ही रहता हूँ की कब अपने छोटे से शहर जाऊंगा.. अपने परिवार के बीच रहूँगा,,, वही बचपन के दिन, खान पान ... आह..... शायद में अब सबसे ज्यादा बचपन और जवानी के उन्ही दिनों को मिस कर रहा हूँ.. उन दिनों को याद करके आज भी में सपनो कि दुनिया में खो जाता हूँ की किस तरह एक छोटे से शहर में मेरा बचपन बीता..भोले भले लोग,, कम ख्वाहिशे,,,..वो त्योहारों में एक दुसरे के साथ भरपूर मजा,, संस्कृति परंपरा और दिल को सकून देने वाला शांत वातावरण ,... ...मुझे पता है की में वहा कभी भी जा सकता हूँ लेकिन कुछ मजबूरिय है जो हमेशा मुझे वहा जाने से रोक रही है. शायद आत्मबल की कमी...अलबत्ता.... कहते है न हर किसी को मुक्कमल जहाँ नहीं मिलता किसी को जमीं नहीं तो किसी को आसमान नहीं मिलता.. सायद यह बात मेरे पर सटीक बैठती है.